राजनीति शायरी || Politics Shayari || Politics Shayari In Hindi
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राजनीति शायरी |
नमस्कार दोस्तों www.newkhabri.com में आपका बहुत बहुत स्वागत है मेरा नाम विकास यादव है दोस्तों आज मैं आपको राजनीति की शायरियाँ बताउँगा।
शायरी - 1
वोटों के खातिर निकले हैं ,
कुछ सौदागर लेके बण्डल नोटों के,
बिकती है हर चीज यहाँ ,
खरीदार है यहाँ कुछ नेता वोटों के ,
भ्रष्टाचार को भ्रष्टाचार के नाम से ही बेच रहे है ,
काले धन के है ये वेपारी वोटों के,
गरीबी वो क्या मिटायेंगे ? मिटाकर गरीबों को ,
जमीन भी बेच खायी , ये सौदागर हैं वोटों के,
वोटों के खातिर निकले हैं ,
कुछ सौदागर लेके बण्डल नोटों के।
शायरी - 2
मिलते रहे हैं मंत्री ऐसे,
देखो तो जरा ये,
देश को मंतर रहे हैं कैसे,
चुनाव में खड़े हैं संत्री ऐसे,
देखों तो ज़रा,
जैसे देश का पेरा ये ही दे रहे हो जैसे,
कुछ तो हैं ठेकेदार ऐसे,
चले हैं लेने ठेका ५ साल का देश का जैसे,
दिखा रहे हैं चाँद ऐसे,
मांगते हैं लेके कटोरा वोटों की भीखों का जैसे,
दिखा रहे हैं झाड़ू ऐसे,
निकले हो करने देश को साफ़ जैसे,
खिला रहे हैं कमल ऐसे,
कीचड़ की चाय पिलाने देश को निकले हो जैसे,
दिखा रहे हो पंजा ऐसे,
जकड लिया हो दम घोटने को देश को जैसे,
मिलते रहे हैं मंत्री ऐसे,
देखो तो जरा ये, देश को मंतर रहे हैं कैसे,
काश मिलजाए इस देश को मंत्री ऐसे,
राम ने भी देश कभी चलाया था जैसे,
शायरी - 3
कितने ही वादे करवालो, नेताओं का क्या जाने वाला,
अभी जैसा चाहो उन्हें नचाओ, उनका क्या जाने वाला,
कुछ दिन और बचे हैं जितनी चाहो खुशी मनालो,
फिर तो रोना ही रोना है ईश्वर भी नहीं बचाने वाला।
शायरी - 4
आज कल हर जगह वोटों के भिखारी निकल पड़े हैं,
कुटिल राजनीति के मझे हुए खिलाडी निकल पड़े हैं,
गलतियों का दोष औरों पर मढने का जो चलन है,
उसे निभाने के लिये बहुत से अनाड़ी निकल पड़े हैं,
जनता को वो झूंठे वादे अब फिर से मिलने वाले हैं,
हम जनता के सेवक हैं झांसे फिर से मिलने वाले हैं,
दुनिया की सारी सुख सुबिधायें अब जनता की हैं,
सावधान जनता अब वोटों के भिक्षुक मिलने वाले हैं।
शायरी - 5
इंडिया की राजनीति में मचा हुआ घमासान है,
लोक सभा की सीट ही जैसे हर नेता का अरमान है,
टिकेट पाने होड़ में रिश्ते नाते भूल रह्रे है,
पुरानी पार्टी छोड़ कर नए गठबंधन जोड़ रहे हैं,
महाराष्ट्र हो या बिहार हर रिश्ते पड़ी दरार,
वोट पाने की चाह में कर रहे एक दूजे पर वार।
शायरी - 6
वो मौतों का खेल खेलते हैं बस राजनीति चमकाने को,
वो जनता को गोट समझते हैं अपनी शतरंज बिछाने को,
वो क्या जाने जनता की पीढ़ा,
जो जनता को केवल मोहरा समझें, जो होते हैं पिटवाने को।
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